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    श्रीलिङ्गमहापुराण-एक सिंहावलोकन की कथा।।




        ।। श्रीलिङ्गमहापुराण-एक सिंहावलोकन की कथा।।



     नमो रुद्राय

    हरये

    ब्रह्मणे परमात्मने।

    प्रधानपुरुषेशाय सर्गस्थित्यन्तकारिणे॥

    जगत्की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहारके कारणभूत

    ब्रह्मा-विष्णु-शिवस्वरूप प्रधान पुरुषाधीश परमात्मा सदाशिवको

    नमस्कार है।

    एक बार श्रीनारदजी अनेक तीर्थोंका भ्रमण करते हुए

    भगवान् शंकरकी आराधना करके नैमिषारण्य पहुँचे, वहाँ

    ऋषियोंने सहर्ष उनका स्वागतकर यथोचित आसन प्रदान

    किया। ऋषि-मुनियोंसे भलीभाँति पूजित होकर तथा उत्तम

    आसनपर सुखपूर्वक विराजमान होकर वे लिङ्गमाहात्म्यसे

    सम्बद्ध विचित्र रहस्योंवाली कथा सुनाने लगे।

    पुराणोंमें लिङ्गमहापुराणका अत्यन्त महिमामय स्थान

    है। पुराणोंकी परिगणनामें वेदतुल्य पवित्र और सभी

    लक्षणोंसे युक्त यह पुराण ग्यारहवाँ है। इस ग्रन्थरत्नके

    आदि, मध्य और अन्तमें-सर्वत्र भूतभावन भगवान्

    सदाशिवकी महिमाका प्रतिपादन किया गया है। इस

    पुराणमें परब्रह्म परमात्माकी लिङ्गरूपमें उपासनाका वर्णन

    है। भगवान् साम्ब सदाशिवकी लीलाएँ अनन्त हैं, उनकी

    लीलाकथाओं तथा उनकी महिमाका प्रतिपादन ही इस

    ग्रन्थका मुख्य प्रतिपाद्य विषय है, जिनके सम्यक् अवगाहनसे

    साधकों-भक्तोंका मन महादेवके पद्मपरागका भ्रमर बनकर

    मुक्तिमार्गका पथिक बन जाता है।इसी समय संयोगवश परम बुद्धिमान् सूतजी तपस्वी

    मुनियोंको प्रणाम करनेकी कामनासे नैमिषारण्यतीर्थमें पधारे

    तपस्वी ऋषियोंने मुनिवर सूतजीसे लिङ्गमाहात्म्यसे युक्त

    पुण्यदायिनी दिव्य पुराणसंहिता (लिङ्गपुराण) सुनानेका

    आग्रह किया। मुनियोंके इस प्रकार आग्रह करनेपर

    पौराणिकोंमें श्रेष्ठ सूतजीका मन प्रसन्नतासे प्रफुल्लित हो

    गया। सर्वप्रथम ब्रह्माजीके पुत्र देवर्षि नारद तथा नैमिषारण्य-

    निवासी मुनियोंका अभिवादन करके पुण्यात्मा सूतजीने

    लिङ्गमहापुराण कहना प्रारम्भ किया।

    सूतजी ऋषियोंसे कहते हैं-सर्वप्रथम शिव, ब्रह्मा,विष्णु तथा मुनीश्वर व्यासजीको नमस्कार करके लिङ्गपुराणकी

    कथा कहनेके लिये मैं इस पुराणमें प्रतिपादित विषयका

    स्मरण करता हूँ।"

    इस पुराणके अन्तर्गत प्रजापतियोंकी सृष्टि, पृथ्वीके

    उद्धारकी कथा और ब्रह्माके दिन-रात तथा उनकी आयुकी

    गणनाका वर्णन किया गया है। इसमें ब्रह्माकी उत्पत्ति तथा

    उनके युग एवं कल्प वर्णित हैं। दिव्यवर्ष, मानुषवर्ष,

    आर्षवर्ष, ध्रौव्यवर्ष तथा पितृवर्षका इसमें वर्णन है। ब्रह्मा,

    विष्णुके विवाद तथा उसके बाद शिवलिङ्गके प्राकट्यका

    वर्णन इसमें विद्यमान है। कलियुगमें आचार्य तथा शिष्यको

    शिवके दर्शन, व्यासोंके अवतार, कल्प, मन्वन्तरका स्वरूप,

    वराहकल्पमें विष्णुके वराह-अवतारकी कथा आदिका

    वर्णन प्राप्त है।

    ऋषियोंके मध्य शिवलिङ्गका उद्भव, लिङ्गकी उपासना,

    स्नानविधि, शौचाचारका लक्षण, वाराणसीका माहात्म्य तथा

    क्षेत्रमाहात्म्य आदिका वर्णन इसमें उपलब्ध है। कैलास-

    वर्णन, पाशुपतयोगका वर्णन, चारों युगोंके स्वरूप तथा

    युगधर्मका वर्णन विस्तारके साथ इसमें वर्णित है। शिवजीके

    सान्ध्य ताण्डवनृत्यका वर्णन, शंकरजीके श्मशानवासका

    वर्णन तथा चन्द्रमाकी कलाओंकी उत्पत्तिका वर्णन इस

    पुराणमें किया गया है। इस लिङ्गपुराणमें शंकरजीका

    विवाह, पुत्ररूपमें श्रीगणेशजीकी उत्पत्ति, सतीके द्वारा

    देवोंको प्रदत्त शाप, शिवजीद्वारा त्रिपुरवध करके देवताओं

    तथा विष्णुकी रक्षा और कार्तिकेयकी उत्पत्ति आदि वर्णित है।

    इस पुराणमें वेदाध्ययनका स्वरूप, ब्रह्मयज्ञ, पितृयज्ञ,

    देवयज्ञ, भूतयज्ञ, नृयज्ञ-इन पाँच महायज्ञोंके प्रभाव तथा इन

    पंचमहायज्ञोंको करनेकी विधिका वर्णन किया गया है। रजस्वला

    स्त्रियोंका सदाचार, उस सदाचारपालनसे विशिष्ट पुत्रकी

    प्राप्ति, सभी वर्गों के लिये अलग-अलग भोज्य तथा अभोज्यके

    विधि-विधान और समस्त पापोंके प्रायश्चित्तके विषयमें

    विस्तारसे वर्णन किया गया है। नरकोंके स्वरूप, कर्मानुसार

    दण्डके विधान, स्वर्ग और नरक प्राप्त करनेवाले पुरधाम

    दूसरे जन्मोंमें प्राप्त होनेवाले चिन, अनेक प्रकारके दानों,

    यमपुरी, पंचाक्षरमन्त्रकी मीमांसा तथा रुद्रमादायका वर्णन

    इस लिङ्गपुराणमें किया गया है। ब्रह्माको परमजान प्रदान

    करनेके लिये शिवका प्रादुर्भाव, भगवान् विष्णुके मत्स्यायम

    अवतारकी कथा तथा सभी अवस्थाऑर्म लीलापूर्वक विष्णुकी है,

    उत्पत्तिका वर्णन वहाँ उपलबा है। अन्य बहुत-से विषयकि या

    साथ भगवान् शंकरके विग्रहोंकी व्यापकता तथा उनकी क

    लिङ्गमूर्तिकी विशेषता इस पुराण में वर्णित है।=




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