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    ब्रह्माजी की आयुका ओर युगों के साल।।

               

    ।।ब्रह्माजी की आयुका ओर युगों के साल।।


    सुतजी कहते हैं-ब्रह्माकी प्राकृत सृष्टिका जो समय

    है, वही उनका दिन है तथा उतने ही परिमाणकी उनकी

    रात्रि है। वे बह्मा दिनमें सृष्टि करते हैं तथा रातमें प्रलय

    करते हैं। ब्रह्माका दिन-रात उत्पत्ति-प्रलयरूपात्मक है,

    मनुष्योंके दिन-रातके समान सूर्योदय-सूर्यास्तवाला नहीं

    है। ब्रह्माका एक दिन ही एक कल्प कहा जाता है तथा

    उसी प्रकार उनकी रात भी एक कल्पके मानके तुल्य कही

    गयी है।

    मनुष्योंका एक कृष्णपक्ष पितरोंके एक दिनके

    बराबर होता है तथा शुक्लपक्ष उनकी रातके समान होता

    है। मनुष्योंके तीस महीनेका समय पितरोंके एक मासके

    बराबर माना गया है। मनुष्योंके ३६० महीनोंका समय

    पितरोंका एक संवत्सर (वर्ष) माना जाता है।

    सूर्यका उत्तरकी ओर संक्रमण (उत्तरायण-सूर्यका

    मकरराशिसे मिथुनराशितक) ही देवताओंका दिवस तथा

    सूर्यका दक्षिणकी ओर संक्रमण (दक्षिणायन-कर्कराशिसे

    धनुराशितक) ही देवताओंकी रात्रि होती है। विशेषतया ये

    दिव्य अहोरात्र कहे गये हैं।

    मनुष्योंके तीस वर्षाका काल देवताओंके एक

    महीनेके बराबर होता है। मनुष्योंके ३६० वर्षोंका कालमान

    देवताओंके एक वर्षके समयके तुल्य कहा गया है।

    देवताओंके ही कालप्रमाणसे युगोंकी संख्या कल्पित

    की गयी है, अब मानुषी वर्षके प्रमाणसे इनका काल

    बताया जाता है-सत्ययुग मानुषी वर्षसे १४,४००००

    वर्षोंका, त्रेतायुगका कालप्रमाण १०,८०००० वर्षोंका,तथा कलियुगका समय

    ३,६०००० वर्षोंका कहा गया है। इस प्रकार सन्ध्या-

    सन्ध्यांशको छोड़कर चारों युगोंका काल ३६ लाख वर्ष

    कहा गया है, चारों युगोंके सन्ध्यांशका काल ३,६००००

    वर्ष होता है। महाप्रलयके समय सम्पूर्ण सृष्टिका लय हो

    जाता है। प्रलय हो जानेपर तथा प्रकृतिके परमात्मामें स्थित

    हो जानेपर केवल प्रधान प्रकृति तथा पुरुष--ये दो ही रह जाते हैं। गुणोंकी ही विषमतासे सृष्टि तथा गुणोंके ही साम्यसे प्रलय होते हैं और उन दोनोंके हेतुमें वे ही परमेश्वर हैं। उन देवाधिदेवने अपनी लीलासे इस प्रकारकी असंख्य सृष्टि की है।

     इस प्रकार असंख्य कल्प, अनगिनत पितामह (ब्रह्मा) तथा असंख्य विष्णु उत्पन्न होते हैं, परंतु वे महेश्वर मात्र एक हैं। ब्रह्माकी आयु दो परार्ध हैं, उन ब्रह्माके द्वारा दिनमें जो भी सृजित होता है, वह सब कुछ रातमें नष्ट हो जाता है।


    भूः, भुवः, स्वः, महः-ये लोक नष्ट हो जाते हैं, किंतु इनसे ऊपरके लोकोंका नाश नहीं होता है। समस्त चर-अचरके अनन्त समुद्रमें विनष्ट हो जानेपर रात्रिमें ब्रह्माजी उसी जलराशिमें शयन करते हैं, इसीलिये उन्हें नारायण कहा जाता है।


     प्रलयकालीन रातके बीतनेपर ब्रह्माजी उठे और चराचर जगत्को शून्य देखकर उन्होंने सृष्टि करनेका विचार किया।


     उन सनातन ब्रह्माने वराहका रूप धारण करके जलमें डूबी हुई पृथ्वीको निकालकर उसे पुनः पूर्वकी भाँति स्थापित कर दिया और उसपर नदी, नद तथा समुद्रोंको उन प्रभुने पूर्वकी भाँति पुनः कर दिया।


     इस प्रकार भगवान् ब्रह्माने जब भूः आदि चारों लोकोंकी रचना कर ली, तब उन सृष्टिकर्ताने पुनः सृष्टि करनेका विचार किया।

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