अष्ठमं स्वरूप माँ महागौरी कथा।।(नवदुर्गा कथा)
।।माँ महागौरी कथा।।
महागौरी कथा-माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है।दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है।
नवरात्रि में आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है।। नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है।
।।मन्त्र।।
इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बाएँ हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शान्त है।पति रूप में शिव को प्राप्त करने के लिए महागौरी ने कठोर तपस्या की थी।
इसी कारण से इनका शरीर काला पड़ गया परन्तु तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर कान्तिमय बना दिया। उनका रूप गौर वर्ण का हो गया। इसीलिए यह महागौरी कहलाईं।
यह अमोघ फलदायिनी हैं और इनकी पूजा से भक्तों के तमाम कल्मष धुल जाते हैं। पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। महागौरी का पूजन-अर्चन, उपासना-आराधना कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं।
एक और मान्यता के अनुसार एक भूखा सिंह भोजन की तलाश में वहाँ पहुँचा जहाँ देवी ऊमा तपस्या कर रही होती है। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गई, परन्तु वह देवी के तपस्या से उठने का प्रतीक्षा करते हुए वहीं बैठ गया। इस प्रतीक्षा में वह काफी कमज़ोर हो गया।
देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आ गई। उन्होने द्याभाव और प्रसन्न्ता से उसे भी अपना वाहन बना लिया क्योंकि वह उनकी तपस्या पूरी होने के प्रतीक्षा में स्वंय भी तप कर बैठा।
कहते है जो स्त्री माँ की पूजा भक्ति भाव सहित करती हैं उनके सुहाग की रक्षा देवी स्वंय करती हैं।
अन्य नाम: इन्हें अन्नपूर्णा, ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी भी कहा जाता है। महादेव-प्रमोद-दा का अर्थ है महादेव को आनंद देनेवाली।
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