जीव गर्भ में प्रभु से क्या वादा करता है ?गर्भ का बच्चा।।
जीव गर्भ में प्रभु से क्या वादा करता है ?
भगवान मुकपिलि देवहूति संवाद
माता देवहूति ने कहा
मातृगर्भ में तो जीव को बड़ा सुख मिलेगा, न सर्दी है, न गर्मी है, न शोक है, न मोह है। मूल रूप से यह मत पूछो माता, बच्चे के गर्भ में जीव कितनी तकलीफदेह होते हैं, इतनी न तो पहले कभी हुई और न ही बाद में
गर्भवास समं दुःखं न भूतो न भविष्यति।
इतना कष्ट होता है। हजारों छोटे-दादा कीटाणु जो मातृगर्भ में पलते हैं, ये जीव के कोमल शरीर को फैलाते हैं, जीव तड़पता है, चिल्लाता है, कौन सुने? कभी-कभी माँ चटपटी वस्तु का सेवन कर लेती है, तो इससे परेशानी होती है।
मां कभी हॉट चीज का सेवन कर लेती है, तो उसे परेशानी होती है। सातवाँ माह ही जन्म जन्मांतर के कर्म इसे याद आते हैं और भगवान की स्तुति करता है।
भगवान कृष्ण से कहते हैं कि हे प्रभु एक बार गर्भ से निकालो, गर्भ से 1 बाहर करो प्रभु! ऐसा भजन शुरू कि फिर कभी गर्भ में नहीं पड़ता। भगवान कहते हैं- तुम गर्भ में ही पूजा करते हो बाहर ही यह विपत्ति सब भूल जाएगी।
जीव कहता है-सत्य कहता हूँ, एक बार गर्भ से निकाल कर देखो- मैं देवता नहीं भूलूँगा। बड़ी-बड़ी प्रतिज्ञाएँ हैं। नौवां महीना पूरा हुआ, दसवां मास हुआ और जैसे ही जन्म की वायु का वेग आया। जीव मातृपल्लव से संसार में फैला हुआ है।
जीव संसार में आ करके प्रभु को भूल जाता है और भक्तिरहित कर्म करके दुःख भोगता है।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
राधे राधे
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