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    पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग कथा।।केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का एक भाग।।



    ।।पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग कथा।।  

    ।।केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का एक भाग है।।


    पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग कथा-केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का एक भाग है ''पशुपतिनाथ'',ये है अद्भुत रहस्य।।


    पशुपतिनाथ मंदिर के विषय में ऐसी मान्यता यहां साक्षात् शिव विराजमान हैं। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार पशुपतिनाथ मंदिर को शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।

    पशुपतिनाथ को केदारनाथ मंदिर का आधा भाग माना जाता है। पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से 3किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के तट पर है स्थित है।

    केदारनाथ मंदिर का आधा भाग-

    पशुपतिनाथ के विषय में कथा है कि महाभारत युद्घ में पाण्डवों द्वारा अपने गुरूओं एवं सगे-संबंधियों का वध किये जाने से भगवान भोलेनाथ पाण्डवों से नाराज हो गये। भगवान श्री कृष्ण के कहने पर पाण्डव शिव जी को मनाने चल पड़े।

    गुप्त काशी में पाण्डवों को देखकर भगवान शिव वहां से विलीन हो गये और उस स्थान पर पहुंच गये जहां पर वर्तमान में केदारनाथ स्थिति है।

    शिव जी का पीछा करते हुए पाण्डव केदारनाथ पहुंच गये। इस स्थान पर पाण्डवों को आया हुए देखकर भगवान शिव ने एक भैंसे का रूप धारण किया और इस क्षेत्र में चर रहे भैसों के झुण्ड में शामिल हो गये।

    पाण्डवों ने भैसों के झुण्ड में भी शिव जी को पहचान लिया तब शिव जी भैंस के रूप में ही भूमि समाने लगे।भीम ने भैंस की पूछ कसकर पकड़ लिया।भगवान शिव प्रकट हुए और पाण्डवों को पापों से मुक्त कर दिया। 

    इस बीच भैंस बने शिव जी का सिर काठमांडू स्थित पशुपति नाथ में पहुंच गया।इसलिए केदारनाथ और पशुपतिनाथ को मिलाकर एक ज्योर्तिलिंग भी कहा जाता है। पशुपतिनाथ में भैंस के सिर और केदारनाथ में भैंस के पीठ रूप में शिवलिंग की पूजा होती है।।

    एक कथा यह भी है-नेपाल महात्म्य और हिमवतखंड पर आधारित स्थानीय किंवदंती के अनुसार भगवान शिव एक बार वाराणसी के अन्य देवताओं को छोड़कर बागमती नदी के किनारे स्थित मृगस्थली चले गए, जो बागमती नदी के दूसरे किनारे पर जंगल में है।

    भगवान शिव वहां पर चिंकारे का रूप धारण कर निद्रा में चले गए।जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें वाराणसी वापस लाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी। 

    इस दौरान उनका सींग चार टुकडों में टूट गया। इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में प्रकट हुए।

    मंदिर दर्शन की मान्यता :-

    पशुपतिनाथ मंदिर के संबंध में यह मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस स्थान के दर्शन करता है उसे किसी भी जन्म में फिर कभी पशु योनि प्राप्त नहीं होती है। हालांकि शर्त यह है कि पहले शिवलिंग के पहले नंदी के दर्शन ना करे। यदि वो ऐसा करता है तो फिर अलगे जन्म में उसे पशु बनना पड़ता है। मंदिर की महिमा के बारे में आसपास के लोगों से आप काफी कहानियां भी सुन सकते हैं। मंदिर में अगर कोई घंटा-आधा घंटा ध्यान करता है तो वह जीव कई प्रकार की समस्याओं से मुक्त भी हो जाता है।

    यह भी पड़े-प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ कथा।।



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