योगसाधना के विघ्न।।योगसिद्धिप्राप्त पुरुषोंके लक्षण।।
।।योगसाधना के विघ्न।।योगसिद्धिप्राप्त पुरुषोंके लक्षण।।
चित्तकी अनवस्थिति, अश्रद्धादर्शन, भ्रान्ति, त्रिविध दुःख, टीर्मनस्य (मनमें असत् संकल्प-विकल्पका होना), निषिद्ध विषयों में मनका लगना-ये कुल दस प्रकारके विघ्न साधकके योगाभ्यासमें उत्पन्न होते हैं।
योगसिद्धि ज्ञानियोंके समागमसे अथवा प्रयत्न करनेसे प्राप्त होती है। यह सिद्धि पूर्वजन्मके योगाभ्यासी साधकको शीघ्र तथा नवीन अभ्यासी साधकको विलम्बसे प्राप्त होती है।
समाहितचित्त होकर साधकको परम शुद्ध दीपशिखाकी आकृतिवाले तथा ओंकार नामसे अभिहित उस परमात्माका अपने हृदयकमलकी कर्णिकामें ध्यान करना चाहिये। वह साधक उस आत्मविद्यारूप प्रदीपसे अजञनान्धकारको नष्ट करके अपने भीतर साक्षात् ईश्वरका दर्शन करता है।
उसी परमेश्वरकी कृपासे धर्म, ऐश्वर्य, ज्ञान, वैराग्य तथा मोक्ष सुलभ हो जाते हैं। इसमें किसी प्रकारका सन्देह नहीं करना चाहिये।
योगसिद्धिप्राप्त पुरुषोंके लक्षण
सन्त, जितेन्द्रिय, द्विजातीय (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य), धर्मज्ञ, साधु, आचार्य, शिवात्मा, दयावान्, तपस्वी, संन्यासी, नैराग्यपरायण, ज्ञानी, मनपर नियन्त्रण रखनेवाले, दानी, उदार, मनसा-वाचा-कर्मणा सत्यवादी, अलोभी, योगपरायण, युतियों तथा स्मृतियोंका अनुकरण करनेवालोंका विरोध न करनेवाले लोगोंपर महेश्वर प्रसन्न रहते हैं।
इस प्रकारके नान तथा भक्ति (श्रद्धा) -से सम्पन्न पुरुषके ऊपर भगवान् गंकर अवश्य प्रसन्न होते हैं और वास्तवमें यही धर्म है।।
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