उमा-महेश्वर के रूपमें लिङ्गपूजन की परम्परा का प्रारम्भ।।
।। उमा-महेश्वरके रूपमें लिङ्गपूजन।।
।। की परम्पराका प्रारम्भ।।
नारायण विष्णुने विश्वेश्वर महादेवसे अत्यन्त मधुरतासे कहा-
हे देवदेवेश। हम दोनोंका यह विवाद तो अत्यन्त मंगलकारी सिद्ध हुआ; क्योंकि हम दोनोंके इसी विवादके निमित्त आप यहाँ प्रकट हुए हैं।
उनका यह वचन सुनकर भगवान् शम्भुने प्रसन्न चित्तसे पुनः कहा-हे पृथ्वीपते ।
उत्पत्ति, स्थिति तथा संहारके कर्ता आप हैं। हे विष्णो । आप इस चराचर जगत्का पालन कीजिये।
मैं निष्कल परमेश्वर ही ब्रह्मा, विष्णु तथा भव (रुद्र) नामोंसे अलग अलग तीन रूपोंमें सृजन, पालन तथा संहारके गुणोंसे युक्त हूँ।
ये पितामह पाकल्पमें आपके पुत्र होंगे, उस समय आप तथा आपके पुत्ररूप वे कमलोद्भव ब्रह्मा-दोनों लोग पुनः मेरा दर्शन प्राप्त करेंगे ऐसा कहकर वे भगवान् महादेव वहीं अन्तर्धान हो गये।
उसी समयसे लोकोंमें शिवलिङ्गके पूजनकी प्रसिद्धि व्याप्त हो गयी समग्र जगत्को अपने में लय करनेके कारण यह लिङ्ग कहा गया है। लिङ्गवेदीके रूपमें महादेवी पार्वती तथा लिङ्गरूपमें साक्षात् महेश्वर प्रतिष्ठित रहते हैं
तदाप्रभृति लोकेषु लिङ्गाचर्चा सुप्रतिष्ठिता।
लिङ्गवेदी महादेवी लिङ्ग साक्षात् महेश्वरः ॥
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